आदिवासी विभाग में करोड़ों भ्रष्टाचार का मामला : नगर पालिका अध्यक्ष सहित अन्य दो की जमानत याचिका खारिज, FIR के 12 दिन बाद भी पुलिस नही कर सकी गिरफ्तार..

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कोरबा// छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के मामले लगातार सामने आ रहे है, लेकिन कार्रवाई को लेकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी संजिदा नजर नही आ रहे है। जीं हां ताजा मामला कोरबा जिला के आदिवासी विभाग में हुए करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार का है। इस पूरे मामले में कलेक्टर के निर्देश पर सहायक आयुक्त की रिपोर्ट पर पुलिस ने चार फर्मो और विभाग के डाटा एंट्री आपरेटर के खिलाफ अपराध दर्ज किया था। लेकिन आज 12 दिन बाद भी पुलिस इस मामले के आरोपियों को गिरफ्तार नही कर सकी है। वहीं इस मामले में आरोपी बने कटघोरा नगर पालिका के अध्यक्ष सहित अन्य दो लोगों की जमानत याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है।

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गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद सूबे की साय सरकार लगातार जीरों टाॅलरेंस का दावा करती आ रही है। लेकिन सरकार के इन दावों पर पुलिस और प्रशासनिक अफसर पलीता लगाने से बाज नही आ रहे है। मतलब यदि भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर मामले में यदि आरोपी रसूख और राजनीतिक पहुंच वाले है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस के भी हाथ-पांव फूल जाते है। कुछ ऐसा ही मामला कोरबा जिले का है। यहां आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर ने सिविल लाइन थाने में एक शिकायत दर्ज करायी थी। छात्रावास मरम्मत के नाम पर हुए करोड़ों रूपये के घोटाले में कलेक्टर अजीत वसंत के FIR दर्ज कराने के सख्त निर्देश दिये थे।

कलेक्टर के निर्देश के बाद सिविल लाइन थाना में पुलिस ने 16 अगस्त को भ्रष्टचार में शामिल चार फर्म में. श्री साई ट्रेडर्स पालीवाल बुक डिपों, में. श्री साई कृपा बिल्डर्स छुरी, में.एस.एस.ए. कंस्ट्रक्शन चैतमा, में.बालाजी इंफ्रास्ट्रक्टर कटघोरा और डाॅटा एंट्री आपरेटर कुश कुमार देवांगन के खिलाफ गैर जमानती धाराओं के तहत अपराध दर्ज किया था। लेकिन सिविल लाइन थान में अपराध दर्ज होने के आज 12 दिन बाद भी ना तो डाॅटा एंट्री आपरेटर की गिरफ्तार हो सकी और ना ही पुलिस ने करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार को अंजाम देने वाले फर्मो के खिलाफ कोई एक्शन लिया है।

प्रमुख सचिव कार्यालय में ही दब गयी कार्रवाई की फाइल, अफसर निर्देश का कर रहे इंतजार
कोरबा के आदिवासी विभाग में केंद्र सरकार से अनुच्छेद 275(1) के तहत मिले करोड़ों रूपये के फंड में बंदरबांट से जुड़ा ये पूरा मामला है। साल 2023 में तब की तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर ने इस फंड में से छात्रावास मरम्मत और नवीनीकरण के कार्यो के लिए 4 करोड़ रूपये खर्च कर दिये। कागजों में छात्रावास मरम्मत और नवीनीकरण कार्य कराने के बाद अपने चहेते 4 फर्मो को करोड़ों रूपये का फंड आबंटित कर ना केवल भ्रष्टाचार किया गया, बल्कि तबादला होने के बाद तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर ने उक्त कार्यो से संबंधित समस्त फाइले आफिस से गायब करवा दी गयी।

इस मामले की जानकारी के बाद सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर ने साल 2023 में ही आदिम जाति-अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर समस्त जानकारी दी गयी। साथ ही दोषी अफसर पर कार्रवाई के लिए दिशा निर्देश मांगे गये। कलेक्टर के निर्देश पर हुए जांच में भ्रष्टाचार का खुलासा होने के बाद भी प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कार्रवाई के लिए दिशा निर्देश मांगे गये। लेकिन प्रमुख सचिव के दफ्तर में इस करोड़ों के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की फाइल ही दब गयी। आलम ये है कि विभाग के पत्र लिखे जाने के सालों बाद भी अफसर आज तक निलंबन या फिर एफआईआर के लिए निर्देश नही सके है। उधर उच्च अधिकारियों से निर्देश नही मिलने पर जिला स्तर पर अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे इंतजार कर रहे है।

भ्रष्टाचार में शामिल नगर पालिका अध्यक्ष की जमानत याचिका हुई खारिज
सिविल लाइन थाना में एफआईआर के बाद सबसे पहले डाॅटा एंट्री आपरेटर कुश कुमार देवांगन और साईकृपा बिल्डर्स के प्रोपराइटर आशुतोष मिश्रा ने निचली अदालत में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। लेकिन कोर्ट ने सुनवाई के बाद दोनों की जमानत याचिका खारिज कर दी। इसी तरह में. बालाजी इंफ्रास्ट्रक्टर कटघोरा के संचालक राज जायसवाल जो कि मौजूदा वक्त में कटघोरा नगर पालिका में कांग्रेस पार्टी से अध्यक्ष है, उन्होने भी कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर किया था। जिस पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों कोर्ट ने नगर पालिका कटघोरा के अध्यक्ष राज जायसवाल की जमानत याचिका भी खारिज कर दी है।

फर्जी बिल बनाने वाले सब इंजीनियर और SDO पर भी अफसर है मेहरबान
कोरबा जिले के आदिवासी विभाग में हुए करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार की जांच में अफसरों के साथ ठेकेदार जमकर लाल हुए। इस पूरे मामले की जांच में खुसाला हुआ कि तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के आदेश पर सब इंजीनियर राकेश वर्मा ने जहां बगैर काम कराये फर्जी बिल बनाये, वहीं इन सारे फर्जी बिलों को विभाग के तत्कालीन एसडीओं अजीत कुमार तिग्गा ने कार्य पूर्णता की प्रमाणिकता दी। जिसके बाद करोड़ों रूपये के बिलों का भुगतान बगैर काम कराये ही ठेका कंपनियों के खाते में अंतरित कर दिये गये।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि यदि जांच में इस बात का खुलासा हो चुका है कि सब इंजीनियर और एसडीओं ने बगैर काम कराये फर्जी बिल बनाकर भुगतान आदेश दिया, तो उनके खिलाफ विभाग के अफसर FIR दर्ज क्यों नही करवा रहे ? आखिर जवाबदार अधिकारी विभाग के भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन लेने से क्यों कतरा रहे है ? सवाल ये भी उठता है कि भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर का दबदबा क्या आज भी राजधानी के अफसरों पर कायम है ? जिसके कारण अफसर इस पूरे मामले में हाथ डालने से बच रहे है।

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