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डेस्क/इस कोरोनावायरस के संक्रमण और लॉक डाउन ने हमें ऐसे ऐसे अनुभव कराए हैं , जिसकी पहले कभी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी । संक्रमण का ऐसा डर कि अपनो ने ही बेगाना बनकर संक्रमण के डर से सर से छत छीन लिया । अच्छे भले लोग बंजारों सी जिंदगी जीने को अभिशप्त हो गए हैं । पूरे देश भर में कमोबेश यही स्थिति है । बिलासपुर में भी रेलवे स्टेशन के पास से लेकर बंगला यार्ड 12 खोली चौक तक पेड़ों की छांव तले बैठे ऐसे सैकड़ों लोग दिख जाएंगे। सबके पास अलग सी कहानी है ,लेकिन फिलहाल सब की परेशानी एक जैसी ही है।

इनमें से कई लोग ऐसे थे जो बाहर अन्य शहरों में काम करते थे और अपने घर लौट रहे थे ,लेकिन इसी बीच ट्रेनों के पहिए थम गए और यह लोग बिलासपुर में ही फंस कर रह गए । बाद में इन्हें स्टेशन से भी बाहर निकाल दिया गया । लिहाजा स्टेशन के पास ही पेड़ों की छांव को इन लोगों ने ठिकाना बना लिया । यही दूसरों के रहमों करम पर जिंदगी की गाड़ी चल रही है। कुछ लोग तो इनसे भी बड़े बदकिस्मत लोग हैं, जो अन्य शहरों में कमाने खाने गए थे लेकिन अपने शहर लौट तो आए मगर फिर भी घर वालों ने ठुकरा दिया। कोरोना का डर ऐसा कि परिवार वाले भी साथ रखने को तैयार नहीं हुए। राजकिशोर नगर में रहने वाले मोहम्मद अली भी इन्हीं में से एक है । पूरा परिवार शहर में है ,लेकिन मोहम्मद अली को इसलिए घर में प्रवेश नहीं मिल रहा कि कहीं उनमे कोरोना का संक्रमण तो नहीं है । ना जांच हुई ना इलाज हुआ। फिर भी मोहम्मद अली जैसे सैकड़ों लोग अभिशप्त घोषित कर दिए गए।

इस तेज गर्मी में खुले आसमान के नीचे दिन और रात गुजर रही है। दोपहर में लू के थपेड़े परेशान करते हैं तो रात में सांप बिच्छू का डर सताता है। ऐसे में जिंदगी की गाड़ी इसलिए चल पा रही है क्योंकि कुछ नेक दिल लोग सुबह-शाम दो वक्त का खाना पहुंचा देते हैं। खाना बेहद सादा क्यों ना हो पर जिंदगी जीने के लिए उससे जरूरी ऊर्जा मिल ही जाती है । यह सभी अपने अपने घर लौटना चाहते हैं लेकिन परिस्थितियां उन्हें इसकी इजाजत नहीं दे रही। सरकार चाह कर भी इनकी कोई मदद नहीं कर सकती। सचमुच कोरोना वायरस ने इंसान को जिंदगी के सारे रंग एक साथ दिखा दिए हैं । डर ने इंसानियत का चोला उतार फेंका है । सच्चाई अपने पूर्ण नग्न स्वरूप में सामने है। जीवन का मोह ऐसा, जो किसी पर भी भरोसा करने की इजाजत ही नहीं देता । इन लोगों ने लगभग वह वक्त यहां गुजार लिया है जो क्वॉरेंटाइन के लिए तय है, लेकिन इस बीच भी किसी में कोई लक्षण नहीं आना दर्शाता है कि यह सभी स्वस्थ हैं। मगर फिर भी यह बात इनके अपनों को कोई कैसे यकीन दिलाएं। कम से कम उनके लिए, जिनके घर आसपास ही हैं। वह तो उनसे भी बड़े अभागे हैं जो दूसरे शहरों से आकर यहां फंसे हैं। अपने घर के करीब पहुंचकर यू बंजारों से जिंदगी गुजारने का दर्द क्या होता है यह इन आंखों में देखा जा सकता है। वैसे यहां मौजूद हर चेहरा अपने आप में एक दास्तां है लेकिन फिलहाल तो इन्हें पढ़ने की फुर्सत किसी के पास नहीं है
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