सरिया तहसील के किसान की जीत: हाईकोर्ट से हारे, पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने सुनी आवाज, दो महीने में बनेगा भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण..

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सारंगढ़-बिलाईगढ़// छत्तीसगढ़ में भूमि अधिग्रहण से जुड़े हजारों किसानों के लिए राहत की खबर आई है। अब भूअर्जन से जुड़ी गड़बड़ियों और न्याय के लिए भटकने की बजाय किसानों को मिलेगा एक मजबूत मंच। और यह सब संभव हुआ है सरिया के एक किसान बाबूलाल की जिद और संघर्ष से, जिसने हाईकोर्ट से हारने के बावजूद हार नहीं मानी और सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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मामला क्या है?
दरअसल, सरिया तहसील के बरगांव निवासी बाबूलाल ने महानदी पर बने जल संसाधन विभाग के कलमा बैराज प्रोजेक्ट को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण का गठन करे और खाली पड़े पदों पर तत्काल नियुक्ति की जाए। बाबूलाल का कहना था कि भूअर्जन में गलतियों के बाद किसानों के पास कोई स्पष्ट अपील प्लेटफॉर्म नहीं होता, और सीधे हाईकोर्ट जाना पड़ता है। 21 जून 2024 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह कहते हुए बाबूलाल की याचिका खारिज कर दी कि उन्होंने अपना पक्ष मजबूती से नहीं रखा। पर बाबूलाल ने हार नहीं मानी। उसने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक आदेश
14 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के चीफ सेक्रेटरी को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि दो महीने के भीतर भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण का गठन किया जाए, नहीं तो कार्रवाई तय मानी जाए। यह आदेश न केवल बाबूलाल के लिए बल्कि पूरे प्रदेश के उन किसानों के लिए जीत है, जो सालों से भूअर्जन के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाते आ रहे हैं।

अब मिलेगा न्याय का मंच
इस प्राधिकरण के बनने से अब किसानों को भूअर्जन में हुई गड़बड़ी पर सीधे अपनी बात रखने का मंच मिलेगा। जिले स्तर पर जो बातें दबा दी जाती थीं, वे अब सीधे सामने आएंगी। हाईकोर्ट पर मामलों का बोझ भी घटेगा और किसानों को राहत मिलेगी।

एक किसान की लड़ाई ने जगाई उम्मीद
बाबूलाल की यह कानूनी लड़ाई बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो व्यवस्था को भी झुकना पड़ता है। एक आम किसान की अपील अब पूरे छत्तीसगढ़ के लिए उम्मीद की किरण बन गई है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का आदेश सामने है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार दो महीने में यह प्राधिकरण गठित करती है या फिर एक और कानूनी लड़ाई की ज़मीन तैयार होती है। लेकिन इतना तय है—बाबूलाल जैसे लोगों के जज्बे ने सिस्टम को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

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