बरमकेला जनपद में सियासी टकराव तेज़: अध्यक्ष के भाजपा जाने से कांग्रेस में हड़कंप, आरोप-प्रत्यारोप जारी..

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सारंगढ़-बिलाईगढ़// बरमकेला जनपद पंचायत की राजनीति इन दिनों जबरदस्त उथल-पुथल में है। जनपद अध्यक्ष डॉ. विद्या किशोर चौहान के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने एक तीखी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्हें विश्वासघाती और स्वार्थी करार दिया है। वहीं डॉ. चौहान की तरफ से विश्वसनीय सूत्रों ने कांग्रेस के भीतर उपेक्षा, अपमान और तानाशाही के आरोप सामने आए हैं। पूरा मामला अब व्यक्तिगत आस्था, राजनीतिक विवशता और संगठनात्मक विफलता का जटिल रूप ले चुका है।

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कांग्रेस का हमला: गीता पर खाई कसम तोड़ी, भ्रष्टाचार से बचने की साजिश

कांग्रेस द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि डॉ. चौहान को अध्यक्ष बनाने के लिए कार्यकर्ताओं ने 22 दिन तक अज्ञातवास किया, सदस्यों को एकजुट किया, तब जाकर जनपद अध्यक्ष पद पर जीत दिलाई गई। इस दौरान उन्होंने जगन्नाथ मंदिर में गीता पर हाथ रखकर पांच साल तक कांग्रेस नहीं छोड़ने की कसम भी खाई थी।

कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि डॉ. चौहान ने पार्टी छोड़ने से पहले जनपद की फंडिंग व्यवस्था में भाजपा के दबाव और डर के चलते यह कदम उठाया। आरोपों के मुताबिक, भाजपा समर्थित सदस्यों द्वारा 15वें वित्त आयोग और गौण खनिज की राशि में कांग्रेस जनप्रतिनिधियों को हिस्सा न देने का दबाव बनाया जा रहा था, जिससे भयभीत होकर अध्यक्ष ने पाला बदल लिया।

सबसे गंभीर आरोप उनके परिवार से जुड़े सहकारी समिति घोटाले को लेकर लगाया गया है। कांग्रेस के अनुसार, उनके दो जेठ—कीर्तिचंद चौहान और मनोज चौहान—पर बड़े नावापारा और कंठीपाली समितियों में किसानों के नाम पर फर्जी केसीसी ऋण बनाकर लगभग 4 करोड़ से अधिक की हेराफेरी का आरोप है। कांग्रेस ने इसे “भ्रष्टाचारियों की वॉशिंग मशीन” की तरह भाजपा में शरण लेने की चाल बताया।

विश्वसनीय सूत्रों की सफाई: संगठन में तानाशाही और उपेक्षा से आहत थीं अध्यक्ष

डॉ. चौहान की ओर से विश्वसनीय सूत्रों ने दावा किया है कि उन्होंने यह कदम कांग्रेस संगठन के भीतर लगातार हो रहे राजनीतिक अपमान और निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखे जाने के चलते उठाया।

सूत्रों के मुताबिक, जनपद अध्यक्ष बनने के बाद भी डॉ. चौहान को 15वें वित्त आयोग और विधायक निधि से संबंधित विकास कार्यों में पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। उनकी सलाह के बिना ही कार्यों का चयन किया गया, और कुछ चुनिंदा सरपंचों के क्षेत्रों में राशि खर्च कर दी गई। यह व्यवहार केवल अनदेखी नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया राजनीतिक अलगाव माना जा रहा है।

सूत्रों ने यह भी कहा कि डॉ. चौहान ने कांग्रेस के लिए व्यक्तिगत संसाधन खर्च कर संगठन को खड़ा किया, कार्यकर्ताओं को एकजुट किया, और अज्ञातवास तक किया। लेकिन इसके बाद गुटबाजी, अहंकार और स्वार्थ में डूबे नेतृत्व ने उनकी मेहनत और निष्ठा को अनदेखा कर दिया।

केसीसी प्रकरण पर भी पलटवार

फर्जी केसीसी घोटाले में डॉ. चौहान का नाम जोड़े जाने पर उनके करीबी लोगों का कहना है कि यह राजनीतिक प्रतिशोध और चरित्र हनन की कोशिश है। उनका इससे कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है और यह सब केवल जनता के बीच भ्रम फैलाने की कोशिश है।

सियासी गर्मी का असर पंचायत व्यवस्था पर

जनपद अध्यक्ष के पार्टी बदलने के बाद बरमकेला जनपद पंचायत में स्थानीय सत्ता समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। कांग्रेस गुट का प्रभाव कमजोर होता दिख रहा है, वहीं भाजपा गुट अब निर्णय प्रक्रिया में प्रभावी स्थिति में है। लेकिन इस राजनीतिक खींचतान का असर जनपद के विकास कार्यों, प्रस्तावों और जनता के हक की योजनाओं पर भी पड़ता दिख रहा है

क्या कांग्रेस आत्ममंथन करेगी या विभाजन और गहराएगा?

इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस संगठन के आंतरिक लोकतंत्र और नेतृत्व के फैसलों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। डॉ. चौहान का पार्टी छोड़ना केवल “दल बदल” नहीं, बल्कि कांग्रेस के भीतर बढ़ती असंतोष और संगठनात्मक विफलता का संकेत है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस इस संकट से कैसे निपटती है—आत्ममंथन करती है या भीतरघात का शिकार होती है


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