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बिलासपुर/ सिम्स की बदहाली पर जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सिम्स की दशा बेहद खराब है। मेडिकल कॉलेज खुद वेंटीलेटर पर है, यहां की दशा सुधारना डीन- एमएस के वश में नहीं रह गया है। सिम्स को अब रामबाण इलाज की जरूरत है, जिससे सिम्स को स्थापित करने के उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। यहां मशीनें-उपकरण दशकों पुराने हैं।
हाई कोर्ट के सवाल पर महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा ने कहा कि किसी आईएएस को फिलहाल यहां प्रतिनियुक्ति दी जा सकती है। महाधिवक्ता ने इसके लिए 2004 बैच के आईएएस आर. प्रसन्ना का नाम सुझाया है। इस पर हाई कोर्ट ने 48 घंटे में ओएसडी नियुक्ति करने के निर्देश राज्य शासन को दिए हैं। अब 29 नवंबर को सुनवाई होगी। सिम्स की बदहाली पर अखबारों में प्रकाशित खबरों पर संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस की बेंच ने जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई शुरू की है।
अधिवक्ता सूर्या कंवलकर डांगी, संघर्ष पाण्डेय व अपूर्व त्रिपाठी को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए सिम्स का निरीक्षण कर रिपोर्ट देने को कहा गया था। साथ ही स्वास्थ्य सचिव को भी निरीक्षण के निर्देश दिए गए थे। फोटोग्राफ्स के साथ विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें सिम्स के बिल्डिंग की स्थिति, विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता, स्टाफ की कमी, साफ-सफाई, जांच के लिए मशीनों की स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर, सुरक्षा, बजट का आवंटन, दान व मदद में मिले सामान आदि पर जानकारी दी गई है।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, हृदय रोग विशेषज्ञ ही नहीं
बताया गया कि सिम्स में बड़ी संख्या में वेंटीलेटर और अन्य मशीन डंप कर रखे गए हैं। यहां हृदय रोग विशेषज्ञ ही नहीं हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों के 249 पद मंजूर हैं, लेकिन 118 पद खाली हैं, इसी तरह एमबीबीएस डॉक्टरों के 129 में से 33 पद खाली हैं। नर्स, पैरामेडिकल, टेक्नीशियन के पद भी खाली हैं।
निजी कंपनी का काम खराब
कोर्ट कमिश्नरों ने बताया, सिम्स में पिछले एक दशक से साफ-सफाई का जिम्मा आउटसोर्सिंग से निजी कंपनी के पास है। हाउसकीपिंग, सुरक्षा, सफाई का बजट में दवाओं व उपकरणों के बजट से कहीं अधिक है, लेकिन कंपनी के काम की गुणवत्ता बेहद खराब है। सिक्यूरिटी भी लंबे समय से एक ही कंपनी के पास है।
स्ट्रेचर के साथ वार्डब्वाॅय की कमी
पानी की निकासी बड़ी समस्या सिम्स में पानी की निकासी एक बड़ी समस्या है। रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट के बीच में पानी निकासी के लिए बड़ा सा गड्ढा है। ब्लड बैंक में भी सीपेज है। मरीजों के लिए स्ट्रेचर-व्हील चेयर से मरीजों को ले जाने के लिए वार्ड ब्वॉय नहीं हैं। परिजनों को खुद लेकर जाना पड़ता है।
दशा बेहद खराब, युद्धस्तर पर प्रयास की जरूरत
कोर्ट कमिश्नरों ने कहा कि सिम्स की दशा बेहद खराब है, यहां की स्थिति सुधारने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। बताया गया कि परामर्श के लिए हर दिन औसतन 1174 मरीज आते हैं। हर दिन 174 मरीज भर्ती किए जाते हैं। औसतन हर दिन 7 मरीजों की मौत होती है। मरीजों के साथ आने वाले परिजनों के बैठने के लिए यहां कुर्सियां भी नहीं हैं, जिससे उन्हें फर्श पर बैठना पड़ता है।
पीने के पानी की कमी, वाटर कूलर गंदे पड़े हैं
कोर्ट कमिश्नरों ने यह भी बताया कि सिम्स मेडिकल कॉलेज है, लेकिन यहां पीने के पानी की भी उचित व्यवस्था नहीं है। वाटर कूलर गंदे पड़े हुए हैं, इनसे पानी पीने से बीमारी फैलने का भी डर बना रहता है। शौचालय की भी कमी है। महिला- पुरुष के लिए संयुक्त शौचालय है, जहां प्रवेश के लिए सिर्फ एक दरवाजा है। शौचालय बेहद गंदे हैं, जहां जीवाणु-विषाणु पनप रहे हैं।
दीवारों पर सीपेज, जगह-जगह जाले और पीक के दाग
इसी तरह बताया गया कि दीवारों पर सीपेज है। जगह-जगह मकड़ियों के जाले और पान- गुटखे के पीक के निशान हैं। अस्पताल में सबसे जरूरी साफ- सफाई होती है, लेकिन सिम्स में इसकी कमी है। जगह-जगह कूड़ा-कचरा फेंका हुआ नजर आता है। किसी भी कमरे और गलियारे में डस्टबिन भी नहीं रखा गया है।
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