सावन विशेष: पुराणों में वर्णित चंपारण का चम्पेश्वर महादेव मंदिर – रायपुर, आरंग और राजिम के त्रिकोण में बसा अद्भुत तीर्थ..

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रायपुर// सावन माह में भोलेनाथ के मंदिरों में भक्तों का विशेष रुझान रहता है। इसी पावन माह में हम आपको ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के एक ऐसे प्राचीन और पौराणिक महत्व वाले शिवधाम की ओर, जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है – चम्पेश्वर महादेव मंदिर। रायपुर के नजदीक स्थित यह स्थान न केवल अपने शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली के रूप में भी श्रद्धालुओं के बीच विशेष पहचान रखता है।

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चंपारण, महानदी के तट पर बसा एक शांत और आस्था से भरा स्थल है। यह रायपुर से 50 किमी दक्षिण-पूर्व, आरंग और पारागांव से 22 किमी तथा राजिम से 15 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। पंचकोशी यात्रा (फणेश्वर, चम्पेश्वर, बम्हनेश्वर, कोपेश्वर, पटेश्वर) में यह एक प्रमुख पड़ाव है। सावन के महीने में यहां महानदी का जल चढ़ाकर भक्त पूजा-अर्चना करते हैं। लगभग 6 एकड़ में फैला यह मंदिर क्षेत्र हर समय शांत और दिव्य वातावरण से भरा रहता है।

पौराणिक कथा

मान्यता है कि करीब 800 वर्ष पूर्व यहां घनघोर जंगल हुआ करता था। गांव का एक ग्वाला रोज अपनी गायों को चराने जंगल ले जाता था। एक गाय ‘राधा बांझेलि’ रोज शाम को अचानक जंगल के भीतर भाग जाती थी। ग्वाले को आश्चर्य हुआ और उसने एक दिन उसका पीछा किया। उसने देखा कि गाय एक शमी वृक्ष के नीचे खड़े शिवलिंग पर अपने थनों से स्वतः दूध प्रवाहित कर रही है।

जब यह बात गांव में फैली, तो लोग सत्यापन के लिए वहां पहुंचे और उन्होंने भी यह अद्भुत दृश्य देखा। शिवलिंग पर महादेव, माता पार्वती और गणेश जी की त्रिमूर्ति उकेरी हुई थी। बाद में पूजा-अर्चना के साथ स्थल को अनावृत्त किया गया और झोपड़ीनुमा मंदिर बनाकर इसकी पूजा शुरू हुई। समय के साथ यहां पक्का मंदिर बना, जो आज श्री चम्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्मस्थल

धार्मिक दृष्टि से चंपारण का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि यही महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की जन्मस्थली है। कथा के अनुसार, वल्लभाचार्य के माता-पिता काशी से लौटते हुए चंपारण आए थे। संवत 1535 की वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी (ई. 1479) की रात उनकी माता वल्लमागारु ने यहां बालक को जन्म दिया। जन्म के समय शिशु के जीवन की संभावना कम देख माता-पिता ने उसे एक शमी वृक्ष की कोटर में छोड़ दिया और आगे बढ़ गए। अगले दिन लौटकर देखा तो स्वयं अग्निदेव उस शिशु की रक्षा कर रहे थे। यही बालक आगे चलकर पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य बने।

धार्मिक महत्व

चम्पेश्वर महादेव मंदिर, सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र बन जाता है। महानदी का पवित्र जल अर्पित करने, रुद्राभिषेक करने और पंचकोशी यात्रा में शामिल होने के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

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