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जगदलपुर// बस्तर के घने जंगलों में पिछले कई दशकों से फैली माओवादी हिंसा अब खत्म होने की कगार पर नजर आ रही है। माओवादियों के केंद्रीय सैन्य प्रमुख और मुख्य रणनीतिकार बसव राजू की मौत ने संगठन की रीढ़ तोड़ दी है। संगठन अब न केवल नेतृत्वहीन हो गया है, बल्कि अंदरूनी मतभेदों के चलते दो गुटों में भी बंट चुका है।
बसव राजू, जिनका असली नाम नंबाला केशव राव था, माओवादी संगठन के सबसे मजबूत चेहरों में से एक था। उसकी मौत ने संगठन को ऐसा झटका दिया है जिससे वह अब तक नहीं उबर पाया है।
नेतृत्व की लड़ाई से गहराया संकट
बसव राजू की मौत के बाद नया प्रमुख चुनने को लेकर संगठन में भारी उलझन है। शीर्ष माओवादी नेता भूपति उर्फ अभय और केंद्रीय मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के प्रमुख देवजी के बीच अंदरूनी खींचतान चल रही है। भूपति जहां शांति वार्ता की बात कर रहा है, वहीं देवजी अब भी हिंसक संघर्ष को जारी रखने के पक्ष में है।
सूत्रों के मुताबिक, भूपति आत्मसमर्पण के लिए तेलंगाना और महाराष्ट्र पुलिस से संपर्क में है। वहीं देवजी अभी जंगल में सक्रिय है और लड़ाई जारी रखने की रणनीति पर अड़ा हुआ है।
कई वरिष्ठ माओवादी आत्मसमर्पण की कगार पर
बस्तर रेंज के आईजीपी सुंदरराज पी. ने दावा किया है कि माओवादी संगठन के कई शीर्ष नेता आत्मसमर्पण के लिए तैयार हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते दबाव और अंदरूनी असहमति के कारण कई बड़े नाम जल्द ही सरेंडर कर सकते हैं।
20 साल बाद दिखा कुख्यात हिड़मा
माओवादी हमलों का मास्टरमाइंड हिड़मा 20 साल बाद एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है। हाल ही में उसकी नई तस्वीर सामने आई है, जिसमें वह एके-47 पकड़े हुए नजर आ रहा है। पहले की धुंधली तस्वीरों के मुकाबले यह तस्वीर काफी साफ है और उससे यह भी संकेत मिलता है कि हिड़मा की सुरक्षा में सेंध लग चुकी है।
हिड़मा कभी बस्तर के पूवर्ती इलाके में गाय चराने वाला आदिवासी था, जो अब केंद्रीय समिति का सदस्य बन चुका है।
तात्कालिक नेतृत्व भी हुआ खत्म
बसव राजू की मौत के बाद संगठन ने तेजी से सुधाकर और भास्कर जैसे वरिष्ठ नेताओं को बस्तर में तात्कालिक कमान सौंपी थी। सुधाकर ‘रिपोस’ (क्रांतिकारी राजनीतिक स्कूल) का प्रमुख था और भास्कर तेलंगाना स्टेट कमेटी का सदस्य। लेकिन सुरक्षा बलों की सटीक कार्रवाई ने इन दोनों को भी खत्म कर दिया।
अब संगठन के सामने अस्तित्व का संकट
सुरक्षा एजेंसियों का दावा है कि आने वाले दिनों में कई और माओवादी नेताओं को निशाना बनाया जा सकता है। संगठन का शीर्ष नेतृत्व कमजोर हो चुका है, फील्ड कमांडर बिखर चुके हैं और निचले स्तर के कैडर आत्मसमर्पण की ओर बढ़ रहे हैं।
बस्तर के जंगलों में बारूद की गूंज अब कम हो रही है, और शांति की आहट तेज़ होती जा रही है।
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