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बिलासपुर/ सड़क को डायवर्ट कर मरम्मत करते मजदूर, कही सड़क की कंक्रीट ब्लॉक को उखाड़कर नए सिरे से काम करने की तैयारी, फ्लाई ओवर पर चल रही मरम्मत… ये नजारा है बिलासपुर से रायपुर तक 1266 करोड़ रुपए खर्च कर बनाए गए कंक्रीट फोरलेन सड़क का। ये स्थिति अभी की है, इससे पहले भी पिछले पांच सालों से कई जगहों पर मरम्मत का काम कराया जा चुका है। कंक्रीट के कई ब्लॉक उखाड़कर नई ढलाई कराई जा चुकी है।
एक फ्लाईओवर भी ढहाकर दूसरा बनाया जा चुका है, लेकिन पूरे काम में किस कदर भ्रष्टाचार किया गया है अब सड़क को आए दिन मरम्मत की जरूरत पड़ती है। ऐसे मामलों में अक्सर जवाब होता है कि 5 साल ठेका कंपनी मेंटेनेंस करेगी। लेकिन पैबंद वाली सड़कें कितने साल टिकेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं।
बिलासपुर से रायपुर तक 127 किमी लंबी सड़क पर हर रोज कई जगहों पर चल रही मरम्मत देखी जा सकती है, जबकि देशभर में कंक्रीट की सड़क मजबूत मानी जाती है। रायपुर से बिलासपुर तक सिक्स व फोरलेन सड़क देश में बनाई जा रहे एनएचएआई के प्रोजेक्ट में सबसे घटिया काम का उदाहरण है। लंबे इंतजार के बाद 1266 करोड़ रुपए से कुल 127 किमी सिक्स और फोरलेन सड़क 2018 में बनी। तब से लगातार सड़क को मरम्मत की जरूरत पड़ रही है। एक तरफ की सड़क बंद कर मरम्मत की जाती है, इससे कई हादसे भी हो चुके हैं। इधर, एनएचएआई के अधिकारी जवाब देने से ही बचते हैं।
सड़क ही नहीं, फ्लाई ओवर भी कमजोर
कंक्रीट की सड़क ही नहीं, रायपुर से बिलासपुर तक बने सभी फ्लाई ओवर, पुल- पुलिया भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। आए दिन किसी न किसी फ्लाई ओवर, पुल- पुलिया पर मरम्मत का काम चलता रहता है। स्थिति यह है कि पेंड्रीहीड तिराहे से मस्तूरी की तरफ जाने के लिए बनाए गए फ्लाईओवर के एक बड़े हिस्से को ढहाकर दूसरा बनाना पड़ा था। बताया जा रहा है कि भोजपुरी टोल के पास एक ओवरब्रिज की स्थिति भी बेहद खराब है, यह एक तरफ से झुक गई है।
तीन बड़ी कंपनियों को दिया गया था टेंडर
प्रोजेक्ट पर वर्ष 2012 में काम शुरू हुआ, पर वर्ष 2015 में काम शुरू हुआ। वर्ष 2016 में तीन हिस्सों में वर्क ऑर्डर जारी किया गया। एनएचएआई ने तीन कंपनियों दिलीप बिल्डकॉन, एलएंडटी और पुंज लॉयड के साथ एग्रीमेंट किया गया था। पहले यह प्रोजेक्ट 900 करोड़ रुपए का था। बार-बार प्रोजेक्ट अटकने की वजह से सड़क की लागत 1266 करोड़ रुपए पहुंच गई।
तकरीबन हर पुल की मरम्मत हो चुकी
प्रोजेक्ट में छोटे-बड़े मिलाकर 23 पुल हैं, इसमें चार बड़े और 19 छोटे पुल हैं, इनमें धूमा, मोहभट्ठा, पेंड्रीडीह, भोजपुरी समेत तकरीबन सभी पुल की मरम्मत की जा चुकी है। कुछ जगह काम चल रहे हैं, जिससे लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।
हाई कोर्ट की मॉनिटरिंग में काम, फिर भी गड़बड़ी
यह संभवत: देश का पहला प्रोजेक्ट है, जिसकी मॉनिटरिंग हाई कोर्ट ने की थी। वर्ष 2016 में लगाई गई जनहित याचिका पर 24 नवंबर 2016 को पहले आदेश में ही तत्कालीन चीफ जस्टिस की बेंच ने निर्माण की धीमी गति को गंभीरता से लेते हुए केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा था। कहा था कि हाई कोर्ट अब एनएचएआई और निजी कंपनियों के काम की मॉनिटरिंग करेगा, जिससे आम लोगों को परेशानी न उठानी पड़े।
केंद्रीय टीम आई पर कार्रवाई नहीं हुई
बिलासपुर से सरगांव तक फोरलेन का काम दिलीप बिल्डकॉन ने किया है। निर्माण के दौरान ही पुलों में दरार आ गई थी। शिकायत की जांच करने दिल्ली से टीम भी आई थी, लेकिन उस जांच में कोई नतीजा नहीं निकल सका था। अब तो तकरीबन कई जगह दरारें देखी जा सकती हैं।