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सारंगढ़ बिलाईगढ़// सारंगढ़ जिले के कपिसदा ब में सोमवार को जो हुआ, उसने प्रशासन की तैयारी और नीयत दोनों पर सवाल खड़े कर दिए। मेमर्स ग्रीन सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड की चूना पत्थर खदान परियोजना को लेकर रखी गई जनसुनवाई विरोध के बीच पूरी तरह बिखर गई। ग्रामीणों के गुस्से और विरोध के सामने प्रशासन कमजोर पड़ता दिखा और आखिरकार एसडीएम को सादे कागज पर जनसुनवाई निरस्त लिखकर देना पड़ा।

डंडे के जोर पर जनसुनवाई कराने की कोशिश
ग्रामीणों का दावा है कि वे पिछले एक महीने से निरंतर विरोध कर रहे थे, लेकिन प्रशासन तारीखें ही बदलता रहा। 17 नवंबर को तय की गई जनसुनवाई के लिए कई जिलों से पुलिस बल बुलाया गया, कोटवारों और अधिकारियों की तैनाती कर दी गई। माहौल ऐसा था जैसे ग्रामीणों को डराकर जनसुनवाई पूरी कराई जाएगी।

स्थल से दूर बैठ गए ग्रामीण, नारे गूंजते रहे
प्रभावित गांवों के लोग जनसुनवाई स्थल जाने के बजाय रास्ते में ही धरने पर बैठ गए। महिलाएं, पुरुष और बच्चे कड़ी धूप में बैठे रहे। वहीं दूसरी ओर पुलिस बल बैरिकेडिंग और तनावपूर्ण माहौल बनाए रहा। पुलिस प्रशासन हाय हाय, मुर्दाबाद जैसे नारों ने माहौल को और गरमा दिया। कई बार पुलिस और ग्रामीणों के बीच तीखी बहस भी हुई, लेकिन लोग अपनी मांग पर अडिग रहे।

सुविधाओं की कमी ने और भड़काया आक्रोश
दोपहर 12 बजे जनसुनवाई शुरू करने की औपचारिकता तो की गई, लेकिन इसके लिए प्रशासन ने कोई भी तैयारी नहीं की थी। टीन शेड के नीचे प्रशासनिक अमला पहुंचा था। ग्रामीणों के मुताबिक प्रशासन ने न छांव की व्यवस्था की और न पानी की। लोगों ने इसे सीधी लापरवाही बताते हुए कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया बिना तैयारी के शुरू ही क्यों की गई।

रातभर पहरा, रास्तों पर डटे रहे ग्रामीण
लालाधुरवा, जोगनीपाली, कपिस्दा, धौराभांठा सहित कई गांवों के लोग रातभर ठंड में रास्तों पर डटे रहे। दो मुख्य मार्गों पर ग्रामीण पहरा देकर बैठे रहे ताकि कोई अधिकारी या कंपनी प्रतिनिधि उनकी अनुमति के बिना गांव में प्रवेश न कर सके। उनके मुताबिक यह संघर्ष जमीन, खेती, घर और पर्यावरण बचाने का है।
एसडीएम के पास जवाब नहीं, स्थिति बेकाबू
मौके पर पहुंचे अधिकारी ग्रामीणों को समझाने की कोशिश करते रहे लेकिन कोई भी ठोस जवाब नहीं दे सका। जब महिलाओं का समूह जनसुनवाई की अव्यवस्था और प्रशासन की मजबूरी पर सवाल करने पहुंचा तो एसडीएम कुछ बता नहीं सकीं। इसी के बाद माहौल गर्म हुआ और पुलिस बल भी सक्रिय हो गया।
आखिरकार प्रशासन ने हथियार डाले
गुस्से और दबाव ने अंत में प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। एसडीएम ने सादे कागज पर जनसुनवाई निरस्त लिखकर ग्रामीणों को सौंप दिया। हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि यह कागज भी अधूरा और अस्पष्ट है। यह स्थगन है या वास्तविक निरस्तीकरण, इस पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई। लोगों का आरोप है कि प्रशासन फर्जी कागजी खानापूर्ति करके आगे जनसुनवाई सम्पन्न दिखाने की कोशिश कर सकता है।
अब सवाल यह कि आगे क्या होगा
ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन उनकी भावनाओं से खेल रहा है और कंपनी के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। जबकि पूरा क्षेत्र कृषि आधारित है, स्कूल, आवास और योजनाएं चल रही हैं, फिर भी यहां खदान लगाने की मंजूरी कैसे दी गई, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
लोगों ने साफ कहा है कि वे अपने गांव, पर्यावरण और जलस्रोतों को किसी भी कीमत पर खतरे में नहीं पड़ने देंगे। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह जनसुनवाई वास्तव में निरस्त हुई है या प्रशासन इसे कागजों में पूरा दिखाकर आगे बढ़ने वाला है। आने वाले दिन इस लड़ाई का अगला अध्याय तय करेंगे।



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