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सरगांव – श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि गुरुवार को नगर व आसपास क्षेत्रों में श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण हलषष्ठी पर्व धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर व्रतधारी महिलाओं ने संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हुए विशेष पूजा-अर्चना की। परंपरागत रूप से यह पर्व विशेष रूप से गौ माता की पूजा और हल के प्रयोग से उपजे अन्न के त्याग के लिए जाना जाता है।
हलषष्ठी को ललई छठ,बलराम जयंती और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। वार्ड क्रमांक 10 संतोषी मंदिर के पास पूजा के दौरान राजकुमारी पाण्डेय ने बताया कि मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था।अतः यह दिन भगवान बलराम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान बलराम का प्रमुख अस्त्र हल होने के कारण इस दिन हल की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
सुबह से ही महिलाएं व्रत रखकर मंदिरों और घरों में पूजा की। व्रती स्त्रियों ने हल से जुते खेत की मिट्टी से वेदी बनाकर वहां भगवान शिव,माता पार्वती, भगवान बलराम तथा संतान रूपी प्रतिमाएं स्थापित कीं। इसके पश्चात उन्होंने पंचामृत, धूप, दीप, नैवेद्य और वस्त्रादि से विधिपूर्वक पूजन किया।
इस अवसर पर महिलाएं सत्तू, झींगा (लौकी जैसी एक सब्ज़ी), करेला, ककड़ी, बैंगन, मटर, दूब घास, फल आदि अन्न रहित भोज्य पदार्थों का सेवन की। विशेष बात यह है कि इस दिन हल से जोता गया अन्न जैसे गेहूं, चावल,आटा, गाय का दूध,दही घी आदि का पूर्णतः त्याग किया जाता है। इसका उद्देश्य खेती, गौ माता और पारंपरिक जीवनशैली के प्रति सम्मान और संतुलन बनाए रखना है।क्षेत्रों में महिलाओं ने गोधूलि वेला में सामूहिक रूप से मंदिर के तट या तालाबों के किनारे जाकर पूजा संपन्न की। पूजा के उपरांत बच्चों को गोद में लेकर उन्हें स्वस्थ, लंबी उम्र और बुद्धिमान बनाने की प्रार्थना की।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से महिलाओं को संतान सुख प्राप्त होता है और संतान को दीर्घायु और स्वास्थ्य लाभ मिलता है।महामाया मंदिर परिसर,राधाकृष्ण मंदिर परिसर, संतोषी माता मंदिर परिसर, शनिदेव चबुतरा,ब्रम्हदेव चौक,शीतला चौक आदि स्थानों पर सामूहिक पूजन किया गया।