विधायक कॉलोनी के लिए गांव उजाड़ने की तैयारी: नकटी की जमीन पर मचा बवाल..

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रायपुर// राजधानी के नकटी गांव में विधायक कॉलोनी बनाने की तैयारी से हड़कंप मच गया है। एयरपोर्ट के सामने प्रस्तावित एयरोसिटी के बगल की इस ज़मीन को छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने चुना है। करीब 56 एकड़ में से आधी ज़मीन पर विधायकों के बंगले बसेंगे। लेकिन यहां पहले से बसे ग्रामीणों ने दो टूक कह दिया है—“हमारे घर उजाड़ कर बंगला नहीं बनने देंगे!”

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धरने पर बैठी महिलाओं की मांग साफ है—ये ज़मीन हमारी है, सरकार पट्टा दे चुकी है, और प्रधानमंत्री आवास योजना से मिले पैसों से हमने यहां घर बनवाए हैं। अब कोई कागज़ी गलती बताकर हमें बेदखल नहीं किया जा सकता। लेकिन प्रशासन कह रहा है—ये ज़मीन समिलात चारागान की है, यानी सरकारी कामों और सार्वजनिक उपयोग के लिए आरक्षित जमीन।

समिलात चारागान क्या है, और इसका विवाद कैसे खड़ा हुआ?

चकबंदी के दौर में किसानों की बिखरी ज़मीनों को सुव्यवस्थित करने की प्रक्रिया में कुछ ज़मीनें गांव के सामूहिक उपयोग के लिए छोड़ी जाती थीं। इन्हें “समिलात चारागान” कहा जाता था। ये ज़मीनें सरकारी होती थीं लेकिन गांव के उपयोग में रहती थीं—जैसे चराई, सामूहिक बैठकों या पंचायत कार्यों के लिए।

नकटी गांव की जिस ज़मीन पर अब विधायक कॉलोनी बनने जा रही है, वो भी समिलात चारागान में दर्ज थी। पर बड़ी गड़बड़ी यह हुई कि 1940 के दशक में जब चकबंदी हुई थी, तब के कलेक्टर ने इस ज़मीन को “सरकारी निस्तार भूमि” के रूप में दर्ज नहीं किया। कागज़ी रिकार्ड में चूक हो गई, और इसी ने आज का यह बवाल खड़ा कर दिया।

सरकार कह रही, ज़मीन अपनी है — गांव वाले कह रहे, घर हमारे हैं

विधायकों की कॉलोनी बसाने का प्रस्ताव आते ही नकटी गांव में उबाल आ गया। लोग बरगद के पेड़ के नीचे धरना दे रहे हैं, हाथों में पट्टे के कागज़, मकान निर्माण की रसीदें और आवास योजना के दस्तावेज़ लेकर सरकार से पूछ रहे हैं कि अब किस हक से हमें निकाला जाएगा?”

ग्रामीणों का दावा है कि ये उनकी पुश्तैनी ज़मीन है, लेकिन दस्तावेज़ी तौर पर यह बात साबित नहीं होती। वहीं, प्रशासन कहता है कि समिलात चारागान की ज़मीन पर वैयक्तिक हक नहीं होता। असली दिक्कत ये है कि सरकारी रिकार्ड में ये बात कभी साफ़-साफ़ दर्ज नहीं हो पाई, जिससे ग्रामीणों को यह ज़मीन अपनी लगती रही।

अब आगे क्या? विधायक कॉलोनी बनेगी या विरोध बढ़ेगा?

राजस्व विभाग के अफसरों की मानें, तो ये तकनीकी गलती ज़रूर है, लेकिन समाधान मुश्किल नहीं। अगर सरकार इसे निस्तार भूमि मानकर रिकॉर्ड में लाती है, तो कॉलोनी बन सकती है। लेकिन मामला अब जमीन से निकलकर राजनीति में पहुंच गया है। सोशल मीडिया पर सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। अगर सरकार ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई, तो नकटी गांव का विरोध एक बड़ा आंदोलन बन सकता है।

नकटी की ज़मीन अब सिर्फ ज़मीन नहीं रही…

यह सिर्फ प्लॉट की बात नहीं है। ये भरोसे, ज़मीन से लगाव और जीवन भर की पूंजी की बात है। लोग कह रहे हैं कि हमसे हमारे घर छीने जा रहे हैं, ताकि कोई मंत्री सुकून से रह सके। जमीन के कागज़ों में चाहे जो लिखा हो, नकटी वालों ने यहां ज़िंदगी बसी है। अब फैसला सरकार को करना है—विकास का रास्ता क्या लोगों को रौंद कर निकलेगा, या सबको साथ लेकर चलेगा?


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