छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा ने की ‘किसान’ और ’लोहार’ जनजाति को मान्यता देने की मांग, राष्ट्रपति के नाम जिलाधीश सरगुजा को सौंपा गया ज्ञापन..

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रायपुर/ छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा ने सरगुजा और बलरामपुर जिलों में रहने वाले ’किसान’ और ’लोहार’ जनजाति के लोगों को नगेशिया और अगरिया आदिवासी मानते हुए उन्हें अनुसूचित जनजाति की मान्यता देने की मांग की है। इस संबंध में राष्ट्रपति के नाम पर आज एक ज्ञापन जिलाधीश सरगुजा को सौंपा गया।

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आज जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते व आदिवासी एकता महासभा के महासचिव बालसिंह ने कहा कि वर्तमान में इन दोनों जिलों में किसान और लोहार जनजाति बहुलता में निवास करती है, जो वास्तव में नगेसिया और अगरिया जनजाति ही है। इनकी आबादी इस समय लगभग तीन लाख है। ’किसान’ आदिवासियों को नगेसिया जनजाति का दर्जा देने की मांग पर यहां लगातार आंदोलन होते रहा है। अतः नगेसिया जनजाति के साथ ’किसान’ तथा अगरिया के साथ ’लोहार’ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि इस जनजाति को आरक्षण का लाभ मिल सके और इसे गैर–आदिवासियों द्वारा जारी भूमि की लूट से बचाया जा सके।

उल्लेखनीय है कि संसद के इस सत्र में केंद्र सरकार द्वारा संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां) संशोधन बिल, 2022 लाया जा रहा है, जिसमें छत्तीसगढ़ की 42 आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की मान्यता देने का प्रस्ताव रखा गया है। हिज्जे की त्रुटियों सहित छोटी–मोटी विसंगतियों के कारण आदिवासियों के ये समुदाय आज तक अनुसूचित जनजाति की मान्यता से वंचित हैं। प्रस्तावित विधेयक में इन खामियों को दूर करने का प्रयास किया गया है।

किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा ने विधेयक का स्वागत करते हुए मांग की है कि ’किसान’ तथा ’लोहार’ के नाम से पहचाने जाने वाले नगेसिया और अगरिया आदिवासियों के साथ भी न्याय किया जाए तथा संशोधन विधेयक में नगेसिया और अगरिया के साथ ’किसान’ और ’लोहार’ भी जोड़ा जाएं। उन्होंने कहा है कि इस जनजाति के सेटलमेंट रिकॉर्ड में ’किसान’ और ’लोहार’ दर्ज होने के कारण इस समुदाय के लोग जनजाति की मान्यता से वंचित है।

उन्होंने कहा कि नगेसिया जनजाति के लोगों के साथ इनके रोटी–बेटी के संबंध हैं और इनकी रिश्तेदारियां छत्तीसगढ़ राज्य के जशपुर और रायगढ़ जिलों के साथ ही झारखंड और ओडिशा राज्य तक फैली हुई है। झारखंड और ओडिशा में ’किसान’ को ’नगेसिया’ के समकक्ष रखते हुए जनजाति की मान्यता वर्षों पहले दे दी गई है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह विसंगति जारी है और इसके लिए राज्य में 15 वर्षों तक राज करने वाली भाजपा स्पष्ट रूप से जिम्मेदार है।

किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा ने इस राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी भाजपा सांसदों से अपील की है कि ’किसान’ और ’लोहार’ आदिवासियों के साथ जारी अन्याय को दूर करने के लिए संशोधन विधेयक में ”किसान’ और ’लोहार’ जनजाति को जोड़ने के लिए आवश्यक पहलकदमी करें। उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकार से भी आग्रह किया है कि इस संबंध में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करें।

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