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रायगढ़// रायगढ़ जिले के मेधावी बच्चों ने दसवीं और बारहवीं की मेरिट लिस्ट में स्थान बनाया है। कई स्कूलों में शतप्रतिशत बच्चे पास हुए हैं। मगर जिले में ऐसे भी कई स्कूल हैं जिनमें 50 प्रतिशत बच्चे भी पास नहीं हो सके। दसवीं में सात स्कूलों का रिजल्ट 50 प्रतिशत से नीचे रहा है जबकि 12वीं में ऐसे चार स्कूल हैं।
स्कूली शिक्षा के आधार पर ही उच्च शिक्षा के रास्ते खुलते हैं। 12वीं तक अच्छी पढ़ाई नहीं हुई तो भविष्य डांवाडोल हो जाता है। स्कूलों पर बच्चों का भविष्य निर्भर है। शिक्षकों ने ठीक से पढ़ाया तो नंबर अच्छे आते हैं। शिक्षक ही लापरवाह निकले तो बच्चे भी अनुशासन में नहीं रहते। रायगढ़ जिले में दसवीं में 28 स्कूल ऐसे हैं जहां 100 प्रतिशत बच्चे पास हुए हैं। 55 स्कूलों में 90 प्रतिशत से अधिक परिणाम आया। वहीं 122 स्कूलों में 50-90 प्रतिशत परिणाम आया है। सात स्कूल ऐसे हैं जहां 50 प्रतिशत से भी कम बच्चे पास हुए हैं। रायगढ़ शहर के शाउमावि चक्रधर नगर, शाउमावि कन्या रायगढ़, आत्मानंद हिंदी माध्यम स्कूल पुसौर, हाईस्कूल सूपा पुसौर, हाईस्कूल बरतापाली धरमजयगढ़, उमावि कोड़ासिया लैलूंगा और शास. कन्या उमावि खरसिया में दसवीं में आधे बच्चे भी उत्तीर्ण नहीं हो सके।
इसी तरह 12 वीं में 7 स्कूल ऐसे हैं जहां सभी बच्चे पास हुए हैं। 90 प्रतिशत से अधिक परिणाम हासिल करने वाले 47 स्कूल हैं। वहीं 74 स्कूलों में 50-90 प्रतिशत परिणाम आया है। चार स्कूल ऐसे हैं जहां 50 प्रतिशत से भी कम रिजल्ट आया। सेजेस गोरपार खरसिया, उमावि महाराजगंज धरमजयगढ़, उमावि कोड़ासिया लैलूंगा और उमावि गंजपुर लैलूंगा ऐसे फिसड्डी स्कूल हैं। 70 प्रश से कम रिजल्ट वाले सभी स्कूलों की समीक्षा होनी चाहिए। आखिर इतना खराब रिजल्ट कैसे आ रहा है।
90 में 54 फेल, 43 में 21 पास
दसवीं में सबसे फिसड्डी स्कूलों की सूची में रायगढ़ शहर के दो स्कूल शामिल हैं। खरसिया शहर का शासकीय कन्या स्कूल ने तो रिकॉर्ड बना दिया। यहां 90 छात्राओं में से 54 फेल हो गई हैं। कोड़ासियां स्कूल का रिजल्ट 10 वीं और 12 वीं दोनों में खराब रहा। दसवीं में यहां 94 में से 49 विद्यार्थी फेल हो गए हैं। चक्रधर नगर स्कूल में दसवीं में 43 बच्चे थे जिसमें से 21 पास, 13 फेल और 9 पूरक हैं। आत्मानंद स्कूल पुसौर में 49 में से 10 फेल और 16 पूरक हैं। कक्षा 12वीं में सेजेस गोरपार में 73 में से 25 और कोड़ासिया में 70 में 25 बच्चे फेल हो गए हैं। गंजपुर स्कूल में तो कुल दो ही बच्चे थे और दोनों ही परीक्षा में नहीं बैठे।
ऐसे कैसे लागू होगी नई शिक्षा नीति ?
फिसड्डी स्कूलों के परिणामों पर समीक्षा की जरूरत है। सरकारी स्कूलों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। अध्यापन और अनुशासन का स्तर गिरता जा रहा है। गांवों के स्कूलों से पढ़कर निकले बच्चों में वही उच्च शिक्षा हासिल कर पा रहा है, जो सक्षम परिवार से है। ऐसे में नई शिक्षा नीति से क्या हासिल होगा। सरकारी स्कूलों में जब तक शिक्षकों की गुणवत्ता नहीं सुधरेगी, तब तक उम्मीद नहीं की जा सकती।