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रायगढ़// बजरमुड़ा भू-अर्जन घोटाले में नामजद तत्कालीन एसडीएम अशोक मार्बल को निलंबित करने का आदेश तो 5 जून को ही जारी हो गया था, लेकिन वे 14 जून तक सारंगढ़-बिलाईगढ़ में ड्यूटी पर तैनात रहे। यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकार इतने बड़े घोटाले पर कितनी सुस्त गति से कार्रवाई कर रही है।
जानकारी के अनुसार, सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव आरपी त्रिपाठी ने 5 जून को अशोक कुमार मार्बल के निलंबन का आदेश जारी किया था। उन पर बजरमुड़ा भू-अर्जन प्रकरण में लापरवाही बरतने, मुआवजा पत्रक में गड़बड़ी करने और गंभीर अनियमितता करने का आरोप है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने गंभीर आदेश की सूचना जिले तक समय पर नहीं पहुंची। मार्बल शनिवार तक समाज कल्याण विभाग में ड्यूटी करते रहे।
सवालों के घेरे में प्रशासन
घोटाले की जांच दिसंबर 2023 में पूरी हो गई थी, लेकिन राज्य शासन ने कार्रवाई में डेढ़ साल लगा दिए। रिपोर्ट के आधार पर जिलों को निर्देश भेजने में भी छह महीने लग गए और जिन अफसरों पर आरोप था, उनमें से कई के नाम सूची से गायब हैं।
कौन करेगा असली जांच?
इस घोटाले में करीब 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। एफआईआर कराने का आदेश एसडीएम घरघोड़ा को दिया गया था, लेकिन तहसीलदार के माध्यम से कंपनी को बचाते हुए उसी जमीन पर उत्पादन की अनुमति दे दी गई, जहां गड़बड़ियों के सबूत मौजूद हैं।
अब सवाल यह है कि इतनी बड़ी आर्थिक अनियमितता की जांच ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) या सीबीआई से क्यों नहीं करवाई जा रही है?
सूत्रों के अनुसार, मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका भी है। बड़ी रकम के लेनदेन अलग-अलग बैंक खातों में हुए हैं, जिसमें बैंकों की भूमिका की भी जांच जरूरी मानी जा रही है।
जनता में बढ़ रहा असंतोष
एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात कर रही है, दूसरी तरफ महीनों पुराने घोटाले में एक अधिकारी को सस्पेंड करने में डेढ़ साल का वक्त लग रहा है। लोगों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या बाकी जिम्मेदार अफसरों पर भी कार्रवाई होगी या फिर ये घोटाले राजनीतिक रसूख की आड़ में दबा दिए जाएंगे?
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