DAP की कमी : खाद की 70% कमी से किसानों की लागत 55 % बढ़ी, महंगी कीमतों पर हो रही कालाबाजारी..

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रायपुर// धान की खेती करने वाले किसानों को डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) खाद की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। राज्य सरकार ने किसानों को अन्य उवर्रकों का छिड़काव करने का सुझाव दिया है, इससे किसानों की लागत प्रति एकड़ 55 प्रतिशत बढ़ गई है।

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कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते देश में डीएपी के आयात में गिरावट आई है। इससे प्रदेश में इसकी उपलब्धता 70 प्रतिशत तक घट गई है। वहीं किसानों का आरोप है कि सरकारी समितियों में खाद नहीं है, जबकि बाजार में कालाबाजारी की जा रही है। इधर, राज्य सरकार ने इस गंभीर संकट को देखते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखकर डीएपी की आपूर्ति बढ़ाने का आग्रह किया है।

खर्च का विवरणडीएपी के उपयोग पर (₹)एसएसपी के उपयोग पर (₹)
खाद पर खर्च1,350 (डीएपी की एक बोरी)1,530 (एसएसपी की तीन बोरियां)
अन्य खाद पर खर्च (यूरिया)134 (आधी बोरी यूरिया)
मजदूरी (छिड़काव के लिए)300900 (तीन बार छिड़काव)
कुल खर्च प्रति एकड़1,6502,564

तथ्य और आंकड़े

  • कृषि विभाग के अनुसार, चालू खरीफ सीजन में डीएपी का लक्ष्य 3.10 लाख टन था, जिसे घटाकर 1.03 लाख टन कर दिया गया है।
  • कृषि विज्ञानियों के अनुसार डीएपी की कमी को एनपीके, एसएसपी और यूरिया के उपयोग से पूरा किया जा सकता है।
  • डीएपी के एक बोरी में जहां 23 किलो फास्फोरस और 9 किलो नाइट्रोजन होता है, वहीं तीन बोरी एसएसपी और एक बोरी यूरिया मिलाकर वही पोषक तत्व देते हैं।

प्रति एकड़ पर 914 रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ रहे

मीडिया ने पड़ताल में पाया कि डीएपी के अन्य विकल्पों पर किसानों को प्रति एकड़ 914 रुपये अधिक खर्च करना पड़ रहा है। यह डीएपी की तुलना में लगभग 55.39% अधिक है, जिससे किसानों पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ रहा है और खेती की लागत बढ़ रही है।

इन देशों से किया जाता है आयात

भारत उर्वरकों के लिए 60 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। देश में रूस, चीन, सऊदी अरब, मोरक्को, जार्डन से खाद का आयात किया जाता है। दो वर्षों से रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है। इस कारण आयात पर भी असर पड़ा है।

डीएपी के विकल्पों के उपयोग को लेकर जानकारों की राय भी महत्वपूर्ण है। रायपुर स्थित इंदरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम वैज्ञानिक का कहना है कि डीएपी में नाइट्रोजन व फास्फोरस एक साथ मिलने से किसान एक ही बार खाद डालकर निपट जाते हैं। अब विकल्पों के इस्तेमाल में समय, श्रम और लागत तीनों बढ़ेंगे।

वहीं छत्तीसगढ़ कृषि विभाग के संचालक, राहुल देव ने बताया कि डीएपी की आपूर्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। कम आवंटन की वजह से यह स्थिति बनी है। हमने केंद्र से आग्रह किया है कि छत्तीसगढ़ को और आपूर्ति की जाए।

हालांकि इसे लेकर किसान नेताओं ने कालाबाजारी का आरोप लगाया है। भारतीय किसान संघ छत्तीसगढ़, के प्रदेश महामंत्री नवीन शेष ने कहा कि सरकारी समितियों में खाद नहीं है। बाजारों में कालाबाजारी हो रही है। वैकल्पिक उवर्रकों का इस्तेमाल करने से किसानों की प्रति एकड़ लागत बढ़ रही है।

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