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रायपुर// छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग द्वारा मीडिया कवरेज पर लगाए गए कथित प्रतिबंध को लेकर उठे विवाद के बाद सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए वह आदेश वापस ले लिया है। इस फैसले को राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की बड़ी जीत माना जा रहा है। पत्रकार संघ के विरोध, जन समर्थन और सोशल मीडिया के दबाव ने सरकार को आदेश रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया।
विवादित आदेश से भड़का था पत्रकार समुदाय
स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में एक आदेश जारी किया था, जिससे यह संकेत मिला कि सरकारी अस्पतालों में मीडिया कवरेज को सीमित किया जा रहा है। आदेश में किसी भी तरह की रिपोर्टिंग के लिए अनुमति लेने की बात कही गई थी, जिसे पत्रकारों ने मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला बताया। इसके विरोध में पूरे प्रदेश के पत्रकारों में आक्रोश फैल गया।
पत्रकार संघ ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अवस्थी ने आदेश के खिलाफ मुखर होकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने इसे प्रेस की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ करार देते हुए चेतावनी दी कि यदि आदेश वापस नहीं लिया गया तो पूरे राज्य में आंदोलन होगा।
विरोध में जलाए गए आदेश की प्रतियां
राजधानी रायपुर सहित कई जिलों में पत्रकारों ने प्रदर्शन किए। अंबेडकर चौक पर पत्रकारों ने आदेश की प्रतियां जलाकर विरोध जताया। उन्होंने साफ कहा कि अगर तीन दिन के भीतर यह आदेश रद्द नहीं किया गया तो प्रदेशभर में बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा।
सोशल मीडिया से सरकार पर बढ़ा दबाव
विवादित आदेश की प्रति जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जन समर्थन भी पत्रकारों के साथ आ खड़ा हुआ। ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर लोगों ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताते हुए सरकार की आलोचना की। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया।
सरकार ने आदेश किया रद्द
लगातार बढ़ते दबाव के बीच राज्य सरकार ने आखिरकार आदेश को वापस लेने का निर्णय लिया। सरकार के इस कदम का पत्रकार संगठनों और सामाजिक संस्थाओं ने स्वागत किया है। अब पत्रकार स्वतंत्र रूप से अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी खबरें कवर कर सकेंगे।
प्रेस क्लब ने फैसले को बताया लोकतंत्र की जीत
प्रेस क्लब रायपुर के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने सरकार के फैसले को लोकतंत्र की जीत बताया। उन्होंने कहा, “हमारी मांग थी कि इस तुगलकी आदेश को तुरंत रद्द किया जाए, और सरकार ने जनभावना का सम्मान करते हुए यही किया। स्वास्थ्य मंत्री का फैसला स्वागत योग्य है।”
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि लोकतंत्र में जब पत्रकार एकजुट होकर आवाज़ उठाते हैं, तो कोई भी अलोकतांत्रिक फैसला ज्यादा देर टिक नहीं सकता। यह घटना राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को मजबूती देने वाली मानी जा रही है।
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