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बिलासपुर// छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें वन विभाग के ही कर्मचारी अवैध लकड़ी तस्करी में लिप्त पाए गए हैं। यह मामला न केवल विभाग की साख पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जिन पर जंगलों की सुरक्षा का जिम्मा है, वही जंगलों के सबसे बड़े दुश्मन बनते जा रहे हैं।
माेपका चौकी पुलिस ने पकड़ा अवैध लकड़ी से भरा पिकअप..
मंगलवार सुबह सरकंडा थाना अंतर्गत मोपका चौकी क्षेत्र में पुलिस ने एक पिकअप वाहन को रोककर उसमें भरी अवैध इमारती लकड़ी जब्त की। लकड़ी का कोई वैध दस्तावेज न होने पर मामला संदेहास्पद लगा।पूछताछ में खुलासा हुआ कि लकड़ी बिलासपुर वनमंडल के अंतर्गत सोंठी जंगल से काटी गई थी। इस तस्करी में वनपाल सूरज मिश्रा और बिलासपुर वनमंडल में पदस्थ एक रेंजर व वनपाल की संदिग्ध भूमिका सामने आई है।

फर्जी बिल और बचाव की साजिश..
जब पुलिस ने वाहन को रोका, तब कुछ समय बाद वनपाल सूरज मिश्रा खुद मौके पर पहुंचे और एक फर्जी बिल दिखाकर लकड़ी को छुड़ाने की कोशिश की। इससे पहले कि वे वाहन को ले जा पाते, वन विभाग की उड़नदस्ता टीम मौके पर पहुंच गई। टीम ने लकड़ी से भरा पिकअप जप्त कर उसे बिलासपुर वन विभाग कार्यालय ले आई।

संगठित तस्करी की आशंका, उच्च अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध..
सूत्रों के अनुसार, यह केवल एक व्यक्ति का कृत्य नहीं बल्कि एक संगठित और योजनाबद्ध तस्करी रैकेट है। लकड़ी के चौखट और दरवाजे का रूप देकर फर्नीचर के रूप में उपयोग की योजना थी। आशंका है कि वन विभाग के उच्च अधिकारी भी इस तस्करी में संलिप्त हो सकते हैं।
पूर्व में भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले..
बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है। पूर्व में भी विभागीय कर्मचारियों द्वारा लकड़ी काटकर फर्नीचर बनाने और उसे बेचने की घटनाएं सामने आई हैं। फर्जी बिलों और प्रशासनिक संरक्षण के चलते ये कार्यवाही बार-बार दबा दी जाती हैं।
क्या होगी निष्पक्ष जांच या फिर लीपापोती ?
मामले की जांच अब वन विभाग के पास है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या विभाग अपने ही दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कठोर कार्रवाई करेगा या फिर एक बार फिर लीपापोती कर मामला ठंडे बस्ते में डाल देगा? इस घटना ने वन विभाग की कार्यशैली और आंतरिक भ्रष्टाचार को एक बार फिर उजागर कर दिया है। अगर समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो छत्तीसगढ़ के जंगलों का विनाश अब रुक पाना मुश्किल होगा।