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रायपुर/ इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने लाल तथा चौलाई भाजी की दो नई उन्नत किस्में विकसित की हैं. कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्नत नई किस्मों की भाजी से किसानों की पारंपरिक भाजी की अपेक्षा उपज एक से डेढ़ गुना बढ़ जाएगी. नवीन किस्में छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों से इन भाजियों की जैव विविधता के संकलन तथा उन्नतीकरण द्वारा तैयार की गई है, जो स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं. इन दोनों किस्मों से किसान केवल एक माह की अवधि में 50 से 60 हजार रूपए प्रति एकड़ की आय प्राप्त कर सकते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बीज उपसमिति द्वारा इन दोनों किस्मों को छत्तीसगढ़ राज्य के लिए जारी करने की अनुशंसा की गई है.
गौरतलब है, छत्तीसगढ़ में उपजने वाली लाल तथा चौलाई भाजी की पूरे देश में एक अलग पहचान है. साथ ही स्थानीय स्तर भी लोगों द्वारा भारी मात्रा में सब्जी के रूप में भाजी खाई जाती है. इसके चलते स्थानीय किसान अपनी बाड़ियों में बड़े पैमाने पर भाजी उपजाते हैं. भाजी में पाए जाने वाले पाचन योग्य रेशे पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं. भाजियां विभिन्न पोषक तत्वों यथा खनिजों एवं विटामिन से भरपूर होती हैं, जिससे हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है.
नई किस्म खरपतवार से नही होगी प्रभावित..
सीजी चौलाई-1 अधिक उत्पादन देने वाली नवीन किस्म है, जो अरका अरूषिमा की तुलना में 56 प्रतिशत तथा अरका सगुना की तुलना में 21 प्रतिशत तक अधिक उपज दे सकती है. यह किस्म स्थानीय परिस्थितियों में 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज दे सकती है. यह किस्म सफेद ब्रिस्टल बीमारी हेतु प्रतिरोधक है. यह भी एकल कटाई वाली किस्म है. यह किस्में तेजी से बढ़ने के कारण खरपतवार से प्रभावित नहीं होती और अंतरवर्ती फसल हेतु उपयुक्त है. भाजी की इन दोनों नवीन विकसित किस्मों को छत्तीसगढ़ के बाड़ी कार्यक्रम एवं पोषण वाटिका कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा.
उपज में 43 प्रतिशत की होगी बढ़ोतरी
कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में विगत दिनों आयोजित बीज उपसमिति की बैठक में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की नवीन प्रजातियों को छत्तीसगढ़ राज्य में प्रसारित करने की मंजूरी दी गई. इन नवीन किस्मों में लालभाजी की किस्म सीजी लाल भाजी-1 और चौलाई की किस्म सीजी चौलाई-1 प्रमुख रूप से शामिल हैं. सीजी लाल भाजी-1 छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक उपज देने वाली किस्म है, जो अरका अरूणिमा की तुलना में 43 प्रतिशत तक अधिक उपज दे सकती है. यह कम रेशे वाली स्वादिष्ट किस्म है, जो तेजी से बढ़ती है तथा जिसका तना एवं पत्तियां लाल होती हैं. यह किस्म सफेद ब्रिस्टल बीमारी हेतु प्रतिरोधक है. यह एकल कटाई वाली किस्म है. यह किस्म स्थानीय परिस्थितियों में 140 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन देती है.