छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने महिला प्रत्याशियों पर खेला बड़ा दांव, 18% महिला प्रत्याशी, जो देश में सबसे ज्यादा..

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रायपुर/ महिला आरक्षण ‘नारी शक्ति वंदन’ बिल-2023 संसद में पास हो गया है। हालांकि, इसका लाभ 2029 से ही मिलेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस बार महिला प्रत्याशियों पर बड़ा दांव खेला है। भाजपा ने जहां 15 को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस से 18 महिलाएं मैदान में हैं। खास बात यह है कि सिर्फ 3 सीट लैलूंगा, सारंगढ़ और प्रतापपुर में ही महिला प्रत्याशी आमने-सामने हैं।

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केंद्र सरकार की ओर से 2022 में लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा, पुडुचेरी और अरुणाचल प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या 10% से भी कम है। जबकि मेघालय और नगालैंड में एक भी महिला विधायक नहीं है।

छत्तीसगढ़ में अभी 16 महिला विधायक, 11 पहली बार चुनी गईं

प्रदेश में फिलहाल 16 महिला विधायक हैं। इनमें से 3 महिलाएं खैरागढ़ से यशोदा वर्मा, दंतेवाड़ा से देवती कर्मा और भानुप्रतापपुर से सावित्री मंडावी उप चुनाव जीतकर विधायक बनीं। देवती कर्मा 2018 में भी प्रत्याशी थीं, लेकिन भाजपा के भीमा मंडावी से चुनाव हार गई थीं। 2018 के चुनाव में जीती 13 में से 11 महिलाएं पहली बार चुनी गईं थीं। इनमें सबसे ज्यादा कांग्रेस की 11 और 1-1 भाजपा व बसपा की हैं।

2018 के चुनाव में 132 में से 13 को मिली जीत

छत्तीसगढ़ चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 13 महिलाओं को टिकट दिया, इसमें से 10 को जीत मिली। वहीं भाजपा ने 14 महिला उम्मीदवार खड़े किए, पर 1 को ही जीत मिली। इसी तरह बहुजन समाज पार्टी (BSP) की 5 प्रत्याशियों में 1 और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCCJ) की 3 में से 1 जीतकर विधानसभा पहुंचीं।

महिलाओं को टिकट देने में कांग्रेस हमेशा आगे

छत्तीसगढ़ में महिलाओं को टिकट देने में हर बार कांग्रेस आगे रही है, लेकिन 2018 का चुनाव छोड़कर जिताऊ कैंडिडेट के तौर पर भाजपा ने बाजी मारी है। सिर्फ 2018 के चुनाव में कांग्रेस से 11 महिलाएं चुनकर विधानसभा पहुंचीं। अब तक हुए 4 विधानसभा चुनावों में भाजपा की 41 महिला प्रत्याशियों में से 17 और कांग्रेस की 48 में से 20 ने जीत दर्ज की है।

चार चुनावों में सिर्फ 38 ही महिलाएं जीतीं

प्रदेश में पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुए। तब से लेकर 2018 तक के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने 56 महिलाओं को टिकट दिया है। इनमें से सिर्फ 38 महिला प्रत्याशी ही ने ही जीत दर्ज की। हालांकि 2018 में हुए उप चुनाव में महिलाओं की जीत का आंकड़ा बढ़ गया।

सारंगढ़ ने हर बार महिला को जिताया

प्रदेश की सारंगढ़ एक मात्र सीट है, जहां मतदाताओं ने हमेशा महिला उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। 2003 से लेकर 2018 तक हर बार महिला प्रत्याशी ही जीती, लेकिन चेहरे बदल गए। 2003 में इस सीट से बसपा की कमदा जोल्हे जीतीं। इसके बाद 2008 में कांग्रेस की पद्मा मनहर, 2013 में भाजपा की केराबाई मनहर इस सीट से जीती थीं। इसके बाद 2018 के चुनाव में फिर कांग्रेस की उत्तरी जांगड़े ने जीत दर्ज की।

59% सीटों पर महिला वोटर निर्णायक

इस बार चुनाव में लगभग 59 फीसदी सीटों पर महिला वोटर्स का वर्चस्व है। 53 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। इनमें 23 आदिवासी के लिए रिजर्व सीटें हैं, जबकि 2 SC वर्ग के लिए रिजर्व हैं। शेष 28 सीटें सामान्य वर्ग की हैं। बस्तर में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत अधिक रहता है। मैदानी इलाकों में महिलाएं अपेक्षाकृत कम मतदान करती हैं।

छत्तीसगढ़ में 2 चरणों में मतदान

छत्तीसगढ़ में 2 चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में 7 नवंबर और दूसरे चरण में दिवाली के 5 दिन बाद 17 नवंबर को मतदान होगा। दोनों चरण के नतीजे एक साथ 3 दिसंबर को आएंगे। 7 नवंबर को पहले चरण में 20 सीटों पर वोटिंग होगी, जिसमें बस्तर संभाग की 12 और राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटें शामिल हैं। वहीं दूसरे चरण में बाकी 70 सीटों पर मतदान होगा।

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