शेयर करें...
रायपुर/ चुनाव में अक्सर यह होता है कि लोकप्रिय घोषणाएं तो चर्चा में आ जाती हैं लेकिन कई महत्वपूर्ण घोषणाएं अलक्षित रह जाती हैं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने खैरागढ़ और बिलासपुर में चुनावी सभा की, जहां उन्होंने फिर से सरकार आने पर 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त और सिलेंडर में 500 रुपये की सब्सिडी का वादा किया। इसके अलावा महिला स्व-सहायता समूहों और सक्षम योजना में लिए गए कर्ज़ को माफ़ करने की घोषणा की। लेकिन प्रियंका गांधी ने समर्थन मूल्य पर तिवरा या लाखड़ी दाल ख़रीदने की जो घोषणा की है, वह छत्तीसगढ़ के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।
मध्य भारत में किसी ज़माने में लाखड़ी, तिवरा, खेसारी दाल या लेथाइरस सेटाइवस, सबसे अधिक चलन में थी। लेकिन 1907 के अकाल के समय अविभाजित मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में, तिवरा दाल के अत्याधिक सेवन से कुछ लोगों में लकवा की बीमारी की अफवाह फैली और उसके बाद इसके उत्पादन को हतोत्साहित करने की शुरुआत हुई।
न्यूकरोलॉजिकल डिसॉर्डर यानि लैथरिज्मक का दोष, इस दाल पर मढ़ दिया गया। इस दाल के बारे में प्रचारित किया गया कि डी-अमीनो-प्रो-पियोनिक एसिड के कारण शरीर में कई विकार पैदा होते हैं। हालांकि गांव-घरों में रात भर भीगा कर इस दाल का उपयोग होता था। जिससे हानिकारक तत्व की आशंका लगभग ख़त्म हो जाती थी।
लेकिन बिना किसी प्रमाण और शोध के, महज एक दो रिपोर्ट के आधार पर 1961 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कहा जाता है कि विदेशों से आने वाली दाल का बाज़ार बनाने के लिए ज़रुरी था कि तिवरा को आम जन की थाली से बाहर किया जाए। जिन इलाकों में तिवरा का उत्पादन हो रहा था, वहां इसे जानवरों को खिलाया जाने लगा। बाद के दिनों में चने की दाल और बेसन में, तिवरा की मिलावट शुरु हुई।
28 फ़ीसदी प्रोटीन वाली तिवरा, कुछ इलाकों में भोजन की थाली में वापस लौटी लेकिन भ्रांतियां बरकरार रहीं। इस बीच वैज्ञानिकों ने तिवरा की कई नई प्रजातियां विकसित की, जिस में हानिकारक तत्व नहीं के बराबर थे। लेकिन भ्रांति बनी रही। 2008 में जा कर तिवरा दाल से प्रतिबंध हटाया गया।
क्षेत्रफल की बात करें तो आज भी छत्तीसगढ़ में धान के बाद सर्वाधिक रकबा तिवरा का है क्योंकि कम पानी या अधिक पानी में भी तिवरा की फसल अप्रभावित रहती है। ऐसे में समर्थन मूल्य पर तिवरा दाल की ख़रीदी की घोषणा, छत्तीसगढ़ में फिर से इसकी खेती को प्रोत्साहित देने वाला फ़ैसला साबित हो सकता है।
अब बात नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन की। सोमवार को कांग्रेस और भाजपा के बागियों ने राज्य के कई हिस्सों में नामांकन दाखिल किया। लेकिन इन सबसे अधिक चर्चा पाटन की रही, जहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के मुखिया अमित जोगी ने नामांकन दाखिल किया।
अमित जोगी ने कहा कि मेरे आने के बाद पाटन में पहली बार चुनाव होगा। अब तक 23 साल एक ही परिवार के चाचा-भतीजे के बीच सेटिंग चलती रही। अमित जोगी ने कहा कि ये चुनाव मैं सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा हूं। ये चुनाव एक ताकतवर दाऊ परिवार बनाम पार्टी के गरीब अनुसूचित जाति, जनजाति और अति पिछड़ा वर्ग के लोगों के अधिकार का है। मैं तो केवल चेहरा हूं प्रत्याशी पाटनवासी हैं।
पाटन से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव मैदान में हैं और उनके मुकाबले दुर्ग से सांसद विजय बघेल को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है। विजय बघेल पहले भी एक बार भूपेश बघेल को इस सीट पर हरा चुके हैं। लेकिन अमित जोगी के चुनाव मैदान में उतरने से इस इलाके में अनुसूचित जाति के वोटों को लेकर संशय पैदा हो गया है।
दिवंगत मुख्यमंत्री अजीत जोगी की अनुसूचित जाति के वोटों पर गहरी पकड़ थी। अब उनकी अनुपस्थिति में अनुसूचित जाति, खास कर सतनामी समाज के वोटर, जिनकी पाटन में अच्छी-खासी संख्या है; अमित जोगी की कितनी मदद करते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। अगर सतनामी समाज के वोटों पर भूपेश बघेल की पकड़ कमज़ोर हुई और अमित जोगी ने इसमें सेंध लगाई तो भूपेश बघेल के लिए पाटन की राह बहुत आसान नहीं होगी।
Sub Editor